Thursday, January 1, 2015

"टीपो और खमचो दर्शन"


"खमचना" एक दुर्लभ किंतु मूल्यवान शब्द है। बनारस में शिद्दत के साथ शांतिप्रिय व्यक्ति मन अशांत होने पर इसका प्रयोग दैहिक तौर पर करता है। मुझे याद है मेरे एक अभिन्न कृशकाय मित्र अक्सर नथुने फड़फड़ाते इस भारी भरकम असरदार शब्द से अत्यंत मारक हुआ करते थे। बात उन दिनों की है जब बोर्ड की परीक्षाओं में कल्याण राज था। कृशकाय मित्र ज्ञान से ज्यादा गति पर भरोसा करते थे। उनका गंभीर दर्शन ये था कि अध्ययन आपको गति नहीं देता। वो स्पीड ब्रेकर होता है आप बैठ कर पढ़ने में ही रह जाते हैं। आनेवाला समय गति का है, लिहाज़ा अध्ययन की बजाए टीपें और आगे बढ़े, गतिशील हों...।

दर्शन से धनी होने के बावजूद कृशकाय क्रांतिकारी मित्र किस्मत के धनी नहीं हो पाए। कल्याण राज में उनके दर्शन को दो कौ़ड़ी का मानकर खारिज कर दिया गया। भारी संख्या में उनके दर्शन पर मर मिटनेवाले क्रांतिकारी परीक्षा परिणाम आने पर सफलता लिस्ट से ही मिटा दिए गए। लेकिन हर रात की एक सुबह होती है..हुई। जल्द ही सत्ता बदली प्रशासन मुलायम हुआ। "टीप दर्शन" को ज़मीन मिली, दर्शन चढ़ा तो तमाम क्रांतिकारी परीक्षा हॉल में मय कुंजियों किताबों के साथ दाखिल हुए और गतिमान भए।

कृशकाय मित्र ने दो ही दर्शन दिए। "टीप और खमचो दर्शन" । टीप जहां आपको गति देता है तो वहीं खमचना आपको निर्भीक करता है। खमचना दरअसल शब्द से आगे एक क्रिया है। इसका "क्लासिकल एप्रोच" दरअसल पीटने से आगे का है। अपने दुर्लभ दर्शन और असीम प्रतिभा के चलते कृशकाय मित्र एक पार्टी के अमिट क्रांतिकारी कार्यकर्ता, फिर नेता और पदाधिकारी बन उच्च आसन पर सुशोभित भए। बड़े ठेकों में उनकी हिस्सेदारी हुई। प्रोजेक्ट बनाने में उनका टीप दर्शन उनके बहुत काम आया, जहां बात नहीं बनी वहां खमचो दर्शन चमका।