Monday, December 2, 2013

(2-3 दिसंबर की वो दरमयानी रात, भोपाल गैस त्रासदी। किसी पत्थर पर खींची वो कहानी है, जो सदियों से सुनाई जा रही है, और शायद सदियों तक सुनाई जाएगी। कुछ पंक्तियां उनके लिए जो दर्द लिए जीते हैं।)
 
 
क्या लिखें त्रासदी के शहर...?
 
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भोपाल पर कहने के लिए
लिखने के लिए...
कुछ बचा है क्या...
आंसू तो बहुत पहले लिखे गए
मौत ग़ैरों ने लिखी...
सपने अपनों ने जला दिए...
और उम्मीदें...
चिंदी-चिंदी कर लुटा दी गईं
फिर लिखा क्या जाए...
राजनीति की गड्डमड्ड भाषा
उलझे हुए राहत के सुर...
छाले देता ढांढस...
क्या...?
कहें किससे लिखें किसके लिए...
और कौन लिखे...
वो जिनके अपने 29 साल पहले
एक रात में घुल गए...
सर्द जमी आंखों में ख्वाब लिए
या वो लिखें...
जो उस रात मरे नहीं
पर जलते रहे उसी चिता में
कतरा-कतरा
या कि दफ्न हो गए
क्या लिखें...
कि हुक्मरानों ने बड़ी चालाकी से आंसू पोंछे
ये लिखें कि आज भी...
सर्द चेहरा लिए कोई बच्चा
अपने बर्फ के हाथों से मिट्टी कुरेदता है
अपनी ठहरी सांसों को
ज़मीन की तहों में टटोलता है...
क्या लिखें....
कि आज भी पानी ज़हर है
आज भी वो तेज़ाबी दिन...
आंखों को झुलसाता है...
आज भी मौत का वो सौदागर याद आता है
बहुत लिख लिया...
हमारे हिस्से में यही दर्द है...
यही तस्वीरें हैं...
जिसमें नश्तर सी यादें है...
तेज़ाब के छीटें हैं
 
- राकेश पाठक

Monday, May 13, 2013

आज़ाद तो हो ये तोता



तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनज़र अदालत इस नतीजे पर पहुंची है तोते को पिंजरे से मुक्त किया जाए। इसे आज़ाद किया जाए। ताकि ये खुली हवा में सांस ले सके, सही और गलत में फर्क न करे। 
पर सरकार, हुजूर माई लॉर्ड, बराए मेहरबानी हमारा भी पक्ष सुने महाराज। तोता एक सरल पक्षी है। पहले ये जंगली था हमने बड़ी मुश्किल पचास सालों में इसे पालतू बनाया है हुजूर। 

तो इसमें अदालत क्या करे, अदालत चाहती है इसका आज़ाद होना ज़रूरी है

...पर जनाब, हजूरे आलिया, तोता पिंजरे से निकलेगा तो उड़ नहीं पाएगा...पिछले पचास सालों में इसकी कई पीढ़ियां इसी पिंजरे में आईं और मर खप गईं सरकार। इनकी पुश्तों ने आसमान नहीं देखा है हुजूर। देखेंगे तो बौरा जाएंगे।...फिर ऐसा न हो कि ये गुट बनाकर आएं और हमारी माननीय संसद पर, राष्ट्रपति भवन में, सरकारी दफ्तरों और इमारतों पर कब्ज़ा कर लें...

तो क्या हुआ ये भी देश के नागरिक हैं, जहां चाहें रहे उड़ें, आज़ाद तो रहेंगे हुक्म की तामील हो...

ज़रा रुकिए अन्नदाता, ये उड़ेंगे तो देश में लोकतंत्र हिल जाएगा सरकार। ये बोलना शुरू करेंगे तो आज की तारीख से नहीं बोलेंगे...ये तब से बोलेंगे जब से हमने इन्हे पालतू बनाने की प्रक्रिया शुरू की हुजूर...।

तो उससे क्या?

उससे बेड़ा गर्क हो जाएगा सरकार। सोचिए इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। देश के लोग उसे पचा नहीं पाएंगे। नेताओं पर रहा सहा भरोसा उठ जाएगा। बड़ी थू-थू होगी हुजूर...। विश्वास डिगेगा तो कोई वोट नहीं देगा चुनाव का बहिष्कार होगा, वो हुआ तो लोकतंत्र तो खतरे में पड़ेगा न सरकार?

हम्म्...तुम्हारे दागी मंत्रियों का क्या हुआ...?

हुजूर, होगा कुछ, बहुत जल्द होगा हम न्याय के इस मंदिर को भरोसा देते हैं सरकार। प्रक्रिया शुरू हो चुकी है...धीरे-धीरे नैतिकता को जगाने की कोशिश की जा रही है महोदय। आप तो जानते हैं किसी चीज़ का इस्तेमाल सदियों से न हुआ हो तो उसे एक्टिव होने में समय लगता है न्याय देवता।...पर हमारी कोशिश लगातार जारी है, हमें उम्मीद है आम चुनावों से पहले नैतिकता जाग जाएगी सरकार। महारानी से लेकर युवराज तक नैतिकता जगाने की इस जटिल प्रक्रिया में खुद जी जान से लगे हैं हुजूर।

...पर तुम ये दावा कैसे कर सकते हो कि चुनाव से पहले नैतिकता जाग ही जाएगी।

हुजूर, अर्ज़ करना चाहता हूं। नेता की हर हरकत में देश के लिए संदेश छुपा होता है। आजकल इन बेगैरत मीडियावालों ने नेताओं की इमेज यूंही खराब कर रखी है। देखिए सरकार मंत्रियों की नैतिकता चुनाव से पहले जागेगी उसकी वजह है। क्योंकि नैतिकता जागेगी तो, उन्हें या फिर पार्टी दोनों को फायदा होगा। चलिए उन्हे अगर न भी हुआ तो पार्टी का फायदा तो तय है। फायदा होगा तो ये संदेश जाएगा कि देखो नैतिकता को कभी मत छोड़ना, ये हमेशा तुम्हे सफल बनाएगी। बस सरकार इसी महान संदेश को ध्यान में रखते हुए हमारे महान दागी मंत्री जल्दी ही इस्तीफा दे देंगे।
और नहीं दिया तो...?

अलबत्ता तो देंगे हुजूर, नहीं दिया तो ससम्मान निकाल दिया जाएगा।

कब तक?

वो भी आम चुनाव से पहले सरकार। तब हम मान लेंगे कि उनकी नैतिकता कोमा में नहीं है मर चुकी है। फिर तो कोई गुंजाइश ही नहीं बचती न हुजूर...

तो क्या उन्हे हमेशा के लिए पार्टी से निकाल दिया जाएगा?

अरे रे रे....खुदा उनपर रहमत बख्शे हुजूर कैसी बाते कर रहे हैं...सरकार? वो तो हमारे लिए रोल मॉडल होंगे माई लॉर्ड।

रोल मॉडल? वो दागी मंत्री?

क्षमा करें न्याय के देवता, परंतु ये तो आप मानेंगे कि सबके भीतर कुछ न कुछ अवगुण और सगुण दोनों होते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था पाप से घृणा करो पापी से नहीं...और हम तो गांधी के दत्तक

पुत्र है माई लॉर्ड, या कहें बस हमीं हैं...।

हम्म, तो दागी मंत्री रोल मॉडल किस तरह के होंगे?

धैर्य और आत्मबल के होंगे सरकार। हम नए आनेवाले लीडरों को बताएंगे। देखो इनके जैसा बनो,

धैर्यवान और आत्मबलवान। जो विषम परिस्थितियों में भी डिगे नहीं। इनकी संकल्प शक्ति इतनी मजबूत थी नैतिकता जगाने के सारे प्रलोभन व्यर्थ गए। ये नहीं डिगे, तो नहीं डिगे।

आखिर तुम्हारी सरकार में ऐसे मंत्री हैं क्यों...क्या मजबूरी है?

मजबूरी है हुजूर क्या करें पार्टी में माल ही ऐसा बचा है। ईमानदार, पानीदार, रौबदार लोग तो बहुत पहले निकल लिए। जो आज हैं उनमें से बहुतेरे तो चाटुकारिता के चम्मच को थामे राजनीति में आए। और जो आज आ रहे हैं वो तो माशाअल्लाह हैं, उनके एक हाथ में वो पारंपरिक चम्मच है तो दूसरे में या हथियार है या नोट है या फिर सियासत में सफल होने के 101 धूर्त तरीके वाली किताब। अब काम तो इनसे ही चलाना पड़ेगा न हुजूर।

खैर...तो हमें ये बताओ कि क्या तोते को पिंजरे में ही कैद रखोगे?

क्या फरमाते हैं हुजूर, न्याय के मंदिर से निकली हर एक बात का अक्षरश: पालन होगा सरकार। तोता पिंजरे से आज़ाद होगा और ज़रूर होगा माई लॉर्ड। उसे तत्काल पिंजरे से निकाला जाएगा हुजूर...पर आप तो जानते हैं मेरे मालिक, इंसान का दिल मोम का होता है। पचास सालों तक पाला पोसा बड़ा किया, रटाया तोता अब एक झटके से जंगल में छोड़ने से हमारा दिल टूट जाएगा सरकार। इसलिए हम इसे पिंजरे से निकाल तो देंगे पर समय समय पर, इसके पर कतरते रहेंगे ताकि ये हमें छोड़कर उड़ न जाए हुजूर, क्योंकि इंसान का दिल मोम का होता है सरकार।...हां हम इसे अब रटना भी नहीं सिखाएंगे। अब हम इसे पढ़ना सिखाएंगे। ये चुपचाप पढ़ेगा पर बोलेगा कुछ नहीं।