Wednesday, December 24, 2014

एक भैंसपति का दर्द

परेशां रात सारी सितारों तुम सो जाओ....आजकल यही गज़ल सुनते सुनते वो सो जाते हैं। मन बहुत उदास है। इतना उदास कि खाना-पीना, दिसा-मैदान सब भरसक टल जाने की स्थिति तक टालते हैं। करें क्या? उनकी भैंस सिक्कड़ के साथ उड़ा दी गई। मुरैना में आजकल भैंस उड़ाउ गैंग सक्रीय है। तीन भैंसें मरदूद कट्टे दिखाते ले उड़े। वैसा ही वाकया उनके साथ भी हुआ है। वो अक्सरहां सोचते हैं कि काश कि हम आज़म खां रहे होते। काश कि मुरैना में समाजवाद रहा होता। पर हाय रे किस्मत।
इससे याद आया कि वाकई यूपी की जनता ने एक बेहद संवेदनशील सरकार तो चुनी है। मुझे तो शक ये भी होता है कि चोरों ने आज़म की भैंस यूपी की कानून व्यवस्था का औचक टेस्ट करने की नीयत से उड़ाई होगी। और बहादुर दिलेर यूपी पुलिस ने साबित किया कि वो अक्ल और भैंस दोनों को ही उचित सम्मान देते अपने काम में दक्ष है। पर मध्यप्रदेश के मुरैना में हाल बेहाल हैं। वो कोस रहे हैं कानून-व्यवस्था बताइए। "बीतै ठाड़ी रही थी भैंस...बा ने मूड़ में लट्ठ मारौ..." और वो फूटकर रोने लगते हैं।
एसपी भरोसा देते हैं। चिंता मत करिए मिल जाएगी। इस बीच एसपी गौर से उनके चेहरे को कई एंगिल से देखते हैं। मैने पूछा इतनी गंभीरता आप इन्हे क्यों देख रहे हैं? क्या आपको इनपर ही अपनी भैंस चुराने का शक है? वो बोले - "नहीं जी....मैं तो अपने लिए प्रेरणा खोज रहा हूं....।" मैं चौंका - "प्रेरणा और पीड़ित के चेहरे पर???"
"जी! दरअसल मैं देख रहा हूं कि इनका चेहरा बस किसी एंगिल से सूबे के किसी मंत्री से मिल जाए फिर देखिए रातों रात भैंस हाजिर कर दूंगा।"- एसपी साहब ने जवाब दिया
ईश्वर किसी को कुछ दे या न दे। लेकिन किसी भैंसपति को आज़म खां या फिर सूबे के किसी दूसरे मंत्री सा चेहरा ज़रूर दे। कम से कम एक एंगिल से ही सही।

Tuesday, December 23, 2014

जनता परिवार का काक स्नान

बिछिला के गिरना एक कला है। मुझे याद आता है गंगा जी के दशाश्मेध घाट पर जो लोग मां गंगा का जल अपने सिर पर फेंकने आते थे उन्हे मां गंगे हर-हर कराने में देर नहीं करती थीं। लपक के तमाम ऐसे लोग सट्ट से पानी में गोत जाते थे ऑटोमैटिक व्यवस्था थी। घाट के किनारे की सीढ़ियों पर लगी काई इसमें विलक्षण भूमिका निभाती थी। और शायद तमाम नहान शहीदों पर बाद में खिखियाती भी होगी। ठेठ भाषा में इसे बिछलाना कहते हैं।
आज बिछलाना याद आया न जाने कहां से, जब दिल्ली में जनता परिवार का दमघोंटू जमावड़ा देख रहा था टीवी पर। कौन समाजवादी ये वाहियात जमात? कौन नेता लालू, मुलायम और नीतीश-शरद??? कौन सा समाजवाद बिहार वाला या मौजूदा यूपी वाला? लोहिया को ज़मीन में गाड़ कर पाट देनेवाले ये समाजवादी कौन सी जनता की बात कर रहे हैं? गुंडई के दौर की...जहालत के दौर की जिसने बिहार-यूपी की कई पीढ़ियों को बर्बाद करके रख दिया। या फिर उन हफ्ताखोरों की जो देश की राजनीति में छा जाने को बेताब हैं?
वामपंथ से लेकर मौजूदा समाजवाद सिर्फ और सिर्फ गंगा (जनता के मुद्दों को) को सिर पर छिड़ककर पवित्र होने पर आमादा है। इन गुंडों की फौज की न तो कोई हैसियत है न बिसात। मैने देखा है कैसे यूपी समाजवादियों के आने पर बदलती है। कैसे गिरहकटों की जमात अचानक कार्यकर्ताओं में तब्दील हो जाती है। उजड्ड, फूहड़ और बेअक्ल लोगों की जमात। इन्हे बिछला के गिरना होगा...नहीं गिरे तो अड़ंगी लगा के गिराया जाए...पर गिरना ज़रूरी है। कोई सत्ता में आए या जाए...बिहार और यूपी को बर्बाद करने वाले इन लुहेड़ों और लंपटों से तो देश बचना ही चाहिए। और नीतीश को क्या कहें...बेग़ैरत इंसान की महत्वाकांक्षा जब आसमान पर चढ़कर नीचे गिरती है तो किरच-किरच कर टूटती है, तब इंसान, इंसान नहीं रह जाता रेप्टाइल हो जाता है। बिना रीढ़ वाला। घिसट कर चलनेवाला और जीभ लपलपाने वाला। जिसकी आंखों में लाल रेशे हैं और वो एक जमात में शामिल होकर भी चोर नज़र के साथ बैठा है।

Tuesday, December 16, 2014

पत्रकारिता द्वितीयोध्याय:

तो वटवृक्ष के नीचे मुनि नारद और शुकदेव जी महाराज आसनारूढ़ हुए। नारद जी ने कहा- "हे मुनिवर ध्यान से बैठिएगा जिसप्रकार मिष्ठान के सुगंध से चीटिंयां खींची चली आती हैं उसी प्रकार ज्ञान की सुगंध से आलोचक रूपी चींटे पहले ही जगह खोज के बैठ जाते हैं। कहीं ऐसा न हों आप उनपर बैठ जाएं और वो...नारायण, नारायण।"

शुकदेव जी ने मुनिवर को प्रणाम करते अपनी कुशल क्षेम को लेकर उनकी चिंता की सराहाना की उनको बारंबार प्रणाम किया। दोनों की विद्वत् ऋषि वट वृक्ष की छाया में बैठे। आसमान में खलीहर खड़े देवताओं ने दोनों ऋषियों का जयघोष करते पुष्प वर्षा की। लेकिन जैसे ही पता चला कि इस मौके का कोई लाइव कवरेज नहीं है वो मुंह बनाए वहां से खिसक लिए।

शुकदेव जी ने एकबार फिर नारद के प्रणाम करते उनसे निवेदन किया कि - "हे मुनिश्रेष्ठ कृपा कर इस जिज्ञासु को पत्रकारिता के समूल दर्शन का लाभ दें।" "हे ऋषिवर आपको तो राजकीय पत्रकारिता कर इतना मिल जाता है कि कुछ करने-वरने की आवश्यकता नहीं किंतु मुझे तो यूं ही रगड़-घिस करनी पड़ती है। सो हे भगवन् ज्ञान दें ताकि कुछ लिख कर उसको छपवा कर मैं भी कॉपी राइट का सुख प्राप्त कर जगत को तारूं।"

इतना सुनते ही मुनिवर नारद अत्यधिक प्रसन्न भए। उन्होने कहा - हे ऋषिवर आपके ऐसा कथन से मैं अत्यधिक प्रसन्न हुआ हूं। आपकी पत्रकारिता के ज्ञान के प्रति उत्कट इच्छा और आसक्ति को देख मैं आनंदित हुआ। अब मैं जान गया हूं कि मैं किसी गलत व्यक्ति के साथ समय खोटा नहीं कर रहा हूं। बस आपसे मेरे लिए पहले ज्ञान की गुरू दक्षिणा यही है कि अपनी पुस्तक की शुरुआत में मेरी दृष्टि और मेरे ज्ञान के आलोक से चुंधियाती एक सुंदर प्रशस्ति लिखिएगा। और मजबूत तरीके से मुझे भारत रत्न या नोबल जैसा कोई सम्मान दिए जाने की वकालत कर दीजिएगा।

ऐसा कहते नारद मुनि के आंखों में पल भर को अजब सी चमक उठी फिर उन्होने आसपास देखा कि किसी ने सुना तो नहीं। शुकदेव जी महाराज ने नारद जी के इस निवेदन पर उनकी स्तुति गाई। वही पास में गिरे कुछ वन फूलों से उनका सम्मान और अभिषेक किया और इस प्रकार से पत्रकारिता द्वितियोध्याय: का प्रारंभ हुआ। ऋषि नारद ने एकतारे को टनटनाते कहा- हे "ऋषिवर जो अबतक जो अबतक गूढ़ से गूढ़ है। जहां सभी कलाएं स्वयं सिद्ध हैं। जो कथ होकर भी अकथ् है। जो संवाद होते हुए भी नि:संवाद है। जो गंभीर होते हुए भी नर्तकी के समान वाचाल है। जो साम है, दाम है दंड है भेद है, जो अविवेकशील विवेक है, जो ज्ञान से ऊपर का ज्ञान है, जो मर्दन है, जो गर्जन है, जो कृपण है, जो क्रांति से लाल है, उस महान पत्रकारिता के विलक्षण ज्ञान का विस्तारपूर्वक वर्णन करता हू ध्यान पूर्वक सुनें।"

नारद मुनि के ऐसा कहते ही आकाश से फिर देवताओं ने जय घोष करते फूल बरसाए। इन देवताओं का नेतृत्व देवराज इंद्र कर रहे थे। और बाकि सभी देवता उन्ही की चापलूसी के तहत वहां उपस्थित भए थे।

Friday, December 12, 2014

कैलाश ज्ञान

मैं अभिभूत हूं। चाल चरित्र चिंतन और प्रखर राष्ट्रवाद की एक ब्रैंड पार्टी मुझे अभिभूत करती है। मैं उनके ऱाष्ट्रवादी चिंतन का हमेशा से कायल रहा हूं। मैं गंभीर तौर पर मानता हूं कि राष्ट्र की गरिमा, सभ्यता और संस्कृति कब की खत्म हो गई होती अगर ये भगवा महापुरुष हमारे इर्द-गिर्द न होते। मैं इनकी वीरता का कायल हूं। और यकीनन उसके सामने नतमस्तक होता हूं जब दुर्गापूजा के नाम पर दर्जनों लठैत, ललाट से लेकर लार तक को लाल रंग में रंगे भभकाते मुंह के साथ चंदा मांगते हैं।

कल एक वाकया सामने आया। कैलाश सत्यार्थी को नोबेल का शांति पुरस्कार मिला (वाकया ये नहीं है...भाई)। मध्यप्रदेश की विधानसभा में पत्रकारों ने कई विधायकों से इसपर प्रतिक्रिया ली। जो मिला वो आपसे बांट रहा हूं। पूछा गया- "क्या कहेंगे कैलाश सत्यार्थी को नोबेल का शांति पुरस्कार मिलने पर?" राष्ट्रवादी पार्टी के तमाम विधायकों ने सरकार के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को नोबेल का शांति पुरस्कार मिलने पर बधाई दे दी।

"वो तो हैं ही ऐसे....उनका काम कमाल है।"
"उनको तो मिलना ही था केलाश भइया शांति के मसीहा हैं"
"हां तो भइया ने काम ही ऐसा किया है, विकास ही विकास कर दिया चारों तरफ...."
कानून मंत्री बहुत गंभीर हुईं। उन्होने लंबी बात कही। "कैलाश आज से नहीं बहुत पहिले से शांति के लिए काम करते रहे हैं। कई बार उन्होने अशांति फैलाने वाले को लट्ठा मारकर भगाया है।" 

राष्ट्र अपने गौरव के क्षणों में विधायकों की इस तस्वीर पर माथा पीट ले। राष्ट्रवादी होने पर शर्म आ जाए। अब ज़रा विपक्ष यानि कांग्रेसियों को सुनिए-
एक ने कहा- अरे भइया जब राज्य में इनकी सरकार केंद्र में इनकी सरकार तो नोबल सेट कर लिया होगा....
एक ने बमकते हुए- विधानसभा में सवाल उठाते गड़बड़झाले का आरोप लगा दिया।
एक कांग्रेसी विधायक तो कपड़ा फाड़ लोट गए बोले- व्यापम क्या कम था, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतना बड़ा घोटाला कर दिया। इस्तीफा दो, इस्तीफा दो।

इस सबके बीच मैने राष्ट्रवाद और संवेदहीनता की दुहाई देते पार्टी के मीडिया प्रभारी से पूछा- कुछ तो करिए, आपके विधायक सब लीपपोत चौका कर रहे हैं। उनका जवाब था- होश में रहिए, वो जो कर रहे हैं करने दीजिए, राष्ट्रवादी जो कहता है वही ध्रुव है। हमने सरकारी विभागों का ठेका लेने से मना किया है कुछ ठेके अभी भी हमारे पास हैं औऱ वो रहेंगे, खबरदार।

Wednesday, December 10, 2014

पुरातन पद्धति पर चर्चा


कल एक खबर आई। एक साहब को किसी ने धमकी भरा खत लिखा। ये खत उनकी कार में छोड़ा गया था। पत्र के साथ एक खाली कारतूस भी रखी गई थी। पत्र में लिखा था "कायदे से रहो वर्ना तुम्हारे होश को ठिकाने लगा देंगे।" लंबे समय बाद इमेल-व्हाट्स एप के दौर में खालिस पत्र परंपरा को ज़िंदा रखने की कवायद करनेवाले इस धमकीबाज़ के प्रति दिल श्रद्धा से भर गया। और दूसरी वो व्यक्तिसेवा भी दीगर थी जिसमें धमकीबाज़ ने साहब के होश ठिकाने लगा देने की बात कही थी।
होश बहुत लंबे समय से ठिकाने लगाने की परंपरा भी अब करीब-करीब विलुप्तप्राय है। अब तो बहुधा व्यक्ति को ठिकाने लगा देने का प्रयोग सीधे कर लिया जाता है। मैं तो इस बात का पक्का हिमायती हूं कि बहुत सारे लोगों के होश अगर ठिकाने लगा दिए जाएं तो समाज को भला हो जाए। पर यहां एक सवाल पैदा होता है कि ये होश ठिकाने लगता कैसे है। धमकीबाज़ जब अपने होश ठिकाने लगाने की विशेषज्ञता का चि्टठी में ज़िक्र कर हो तो उसके पहले उसे इस बात का खुलासा भी करना चाहिए कि अमुक-अमुक सूत्रों या लक्षणों के ज़रिए इस बात की पुष्ट होती है कि आपका होश अपने ठिकाने से निकलकर इधर-उधर चला गया है।
....और फिर एक और खबर इसी दिन सामने आई कि कुछ हिंदुवादियों ने आगरा में धर्म परिवर्तन (भ्रम में रखकर) कराने का एक अद्भुत विराट और विलक्षण कार्य किया। ये अचानक इन वीरों को हुआ क्या? मैं ये समझ न सका। कल तक तो माथा भर तिलक पोत कर बड़ी-बड़ी लाल आंखे लिए चंदा वसूली करते थे। इनका होश ठिकाने पर है या कि अब मूल ठिकाने से कहीं और निकल गया है। मानक विचलन निकालना ज़रूरी है। क्योंकि इसके बाद ही ये तय हो पाता है कि वापस होश को मूल स्थान पर लाने के लिए किस पद्दति की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पत्र व्यवहार से लेकर कानून व्यवहार और ठोंक बजावन व्यवहार तक की अचूक पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। होश ठिकाने पर लाने की पद्धति पुरानी है पर है कारगर...।

Friday, December 5, 2014

बनारस में एक प्रदर्शन


लोहिया जिंदाबाद!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
राजनरायन जिंदबादा!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
बोल मोलायम हल्ला बोल
तोड़ जेल, अपराधी खोल
"भाइयों अउर बहनों। ई सांप्रदायिक ताकत सब शांति देश का माहौल बिगाड़ रहा है। हमना कहना चाहते हैं, सुन लो कान खोल के। हम लोहिया, राजनरायन, मिश्र जी संताने हैं। हम हिलेंगे नहीं। डटेंगे यहीं। उखाड़ लो जो उखाड़ना है।"
(तालियां-तालियां-तालियां.....खी...खी...खी...खी....)
लोहिया जिंदाबाद!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
राजनरायन जिंदबादा!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
"हमारे खून में समाजवाद है। हमारे कपारे पर समाजवाद है। औ हम समाजबादी लोहिया जी, राजनरायन जी अउऱ पंडित के बलिदान को खाली नहीं जाने देंगे।"
(तालियां-तालियां-तालियां.....खी...खी...खी...खी....)
अचानक माइक से घूम कर धीमे आती आवाज़। - "अरे हरे उधरिया ख़डा हो सारे.....मार देब सरउ बिछला जइबा....."
आवाज़ फिर तेज़ हुई- "हम समाजवाद के लिए जान देने को तैयार हैं"---- "इ पुलिस हमारा कुछौ नहीं बिगड़ा सकती है। हम कुर्बानी देंगे। समाजवादी पाल्टी बांटनेवाली ताकतों को सत्ता में नहीं आने देगी।"
(तालियां-तालियां-तालियां.....खी...खी...खी...खी....)
लोहिया जिंदाबाद!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
राजनरायन जिंदबादा!!!
जिंदाबाद-जिंदाबाद!!!
बोल मोलायम हल्ला बोल
तोड़ जेल, अपराधी खोल
"हां तो हम कह रहे थे। समाजवादी समाजवाद के नाम पर जान दे देगा। देगा कि नहीं देगा???"
"देगा...देगा...देगा.....बोल मोलायम हल्ला बोल..."
(तालियां-तालियां-तालियां.....खी...खी...खी...खी....)
"समाजवादी समाजवाद के नाम पर जान दे देगा।"
धड़ाम-धड़ाम!!!
भाग रे रजुआ भयल धमाका....!!! पुलिस चलउले गोली हौ....
(पता चला किसी बच्चे ने सुतली बम फोड़ा था....नेता जी मय कार्यकर्ता भाग खड़े हुए थे....)