Tuesday, May 19, 2015

एक उदास संवाद


"मैं उदास हूं,"- ये उन्होने लिखा है। "क्यों उदास हैं?" - मैने पूछा। जवाब आया - "समाज किस दिशा में जा रहा है ये सोचकर मैं उदास हूं।" मैने फिर पूछा- "किस दिशा में जा रहा है?" उन्होने कहा- "यही तो मालूम नहीं चल रहा। इसी बात को लेकर उदासी है। तो क्या आपने पता किया...?"
"देखिए कैसे हालात हैं कितना भ्रष्टाचार है, कितना दुख मजदूरों, किसानों और आम आदमी के हिस्से में है।" - वो उदास होते हुए फिर मैसेज फेंकते हैं।
"हां ये तो है, पर रास्ता क्या है?" - मैंने पूछा
"रास्ता क्रांति है, संपूर्ण क्रांति का वक्त है" - इसबार उन्होने मैसेज के साथ एक गुस्से वाला स्टिकर भी प्रेषित किया
मैॆने फिर पूछा- "कहां से की जाए, कोई जगह देखी है क्या?"
"हम जहां हैं वहीं से उठ खड़े हों"- उनका जवाब आया
मैने कहा- "फिलहाल तो मैं वाशरूम में हूं"
"ये मज़ाक का वक्त नहीं है, मामला गंभीर है हम युवाओं को चेतना होगा, अब वक्त नहीं है" - वो लगातार लिखते गए, उन्होने आगे लिखा- "अगर हम चूक गए तो आनेवाला कल हमें माफ़ नहीं करेगा, बच्चे हमसे सवाल पूछेंगे"
"तो क्या हमने अगर आज क्रांति कर दी तो बच्चे सवाल पूछना बंद कर देंगे?" - मेरा कौतूहल था
उन्होने कहा- "यकीनन हम उठ खड़े होंगे तो उनका भविष्य सुधरेगा"
मैने कहा- "कल बिहारी लाल दुबे आपके बारे में पूछ रहे थे।"
उनका संक्षिप्त मैसेज गिरा- "क्या ?"
"वो पूछ रहे थे कि आजकल आप काम-काज में ध्यान नहीं दे रहे।"
"वो नासपीटा, कामचोर मेरे काम के बारे में पूछता है, अहमक कहीं का। आपको मालूम है कितना बड़ा भ्रष्ट आदमी है वो"- इस बार उनका मैसेज कई मैसेजों से बड़ा था
"हूं....!!!" - मैने बस इतना लिखा
उनके दनदनाते हुए तीन मैसेज गिरे- "आपको मालूम है तीन नक्शे पास करने में उसने 3 लाख ऐंठे, उसमें एक कैंडिडेट मेरा था, लेकिन साले ने कंसेशन दे कर उसे भी तोड़ लिया"
"आपको मालूम है व्यभीचारी भी है वो, एक होटल में पकड़े जाने पर मैने ही उसे बचाया था?"
"लीचड़ इतना कि एक चाय भी पिलानी हो तो कोशिश करता है कि पैसे सामने वाला ही दे"
दुबे जी का तबादला हो गया - "मैने फिर मैसेज फेंका"
"क्या बात कर रहे हैं, ये तो बड़ी अच्छी ख़बर है"- उनका जवाब तुरंत मिला एक खींसे निपोरते स्माइली के साथ
"हूं- खबर पक्की है" - मैंने लिखा
"आपकी मिठाई पक्की, कमाल की खबर सुनाई है आपने" - ये उनका आखिरी संदेश था, और उसके तुरंत बाद मेरे फोन की घंटी बजी। ये उन्ही का फोन था।

Tuesday, May 12, 2015

बेल की सेल


बेल का जूस जालिम नहीं होता। जब गर्मी कपारे चढ़के नाच रही हो, बात-बात आप "पिनकावतारी" (पिनक रहे हों या...) हो जाते हो बेल ले लीजिए। फोड़िए, पानी में घोलिए और उतार लीजिए। बेल की अलग-अलग खूबी की वजह से इसके अलग-अलग मायने हैं। सार एक ही है...चढ़ी गर्मी को उतार देना...छटपटाहट को ठंडा कर देना।

जोखी गुरू बेल मुड़ा के ठंडे हो गए हैं। नुक्कड़ पर टकराए तो मैं सहम गया...इससे पहले कि अपशकुनी सवाल दागता खुद ही फूट पड़े- "अरे नहीं नहीं...गर्मी चढ़ रही है...हमने सोचा बाल उतरवा लें...।" बेल मुंडवाना जिगर की बात होती है। जिगर हर किसी के पास नहीं होता। जोखी गुरू के पास जिगर है। मैने कई बार उन्हे ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने के बाद भी पुलिस से उलझते देखा है। अपनी पार्टी और पद का हवाला देते। ये भूलकर कि अगर गर्मी पुलिसवाले के सिर पर शिफ्ट हुई तो उनके बेल का मुरब्बा बनाने में वो देर नहीं करेगा।

कथा से भटकें नहीं यहीं अटके रहें। हां तो मैं कह रहा था कि कि बेल की सेल लगी है। जोखी गुरू को बेल में अथाह रुचि रही है। वो बेल खाते हैं, बेल का जूस पीते हैं, बाल उतरवाकर अपने उत्तर शीर्ष भाग को बेल में तब्दील कर देते हैं और बेल दिलवाते भी हैं। इन भांति-भांति की बेलों का मकसद बस एक होता है टेंशन को दूर भगाना।

मुझे तो लगता है कि हालिया "बेल" घटनाएं एक मानवतावादी कदम है। मैं इसका तहेदिल से स्वागत करता हूं। गर्मी के दिनों में ऐसी बेल की सेल होती रहनी चाहिए। जेल में कई लोगों के हाजमे गड़बड़ा जाते हैं। ऐसे में बेल किसी न किसी रूप में उनके हाजमे के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। यहां जोखी गुरू बेल को लेने बिसेसरगंज मंडी में सबेरे-सबेरे जा धमकते हैं अच्छा बेल हासिल करने के चक्कर में दो-चार घंटा और कभी-कभी तो दो-तीन दिन इंतज़ार करना पड़ता है। लेकिन सलमान को देखिए, चार घंटे में बेल का जूस, बेल का मुरब्बा और बेल सब मिल गई। हाजमा तो ठीक होगा ही।

जयललिता अम्मा को बेल मिली है। फिर राम लिंगा राजू को भी बेल मिल गई। बेहद इंसानी अप्रोच पर आंखें भर आती हैं। आज जोखी गुरू फिर नुक्कड़ पर टकरा गए। मैने कुल जमा तीन बेल देखे हैं। एक तो उनके शरीर के उर्ध्व भाग पर रखी उनकी सजीव बेल जिसमें उनकी दोनों आंखें धंसी हैं। और उनके हाथ में फंसे दो बेल। जोखी गुरू मिले तो हांफ रहे थे। आंखे कोटरो में चली गईं थीं। बेहद जर्जर शरीर। मैने पूछा- गुरू ये क्या ? उन्होने बताया- "असल में बेल की सेल चल रही थी, तो एक दिन में छह बार बेल का जूस ले रहा था, अत्यधिक बेल ने पेचिश दे दी।"

"...और इसके बाद भी दो बेल हाथ में?" - मैने पूछा

वो बोले- "अरे नहीं भाई। हुआ यूं कि कल कल्लन धोबी से एक सिपाही दुकान लगवाने के एवज़ में पैसे मांग रहा था। कल्लन ने मना किया तो उसने डंडा चला दिया। कल्लन ने आव देखा न ताव सिपाही को लपेट दिया। अब सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और पुलिसवाले पर हाथ उठाने के चक्कर में जेल में है।"

"तो ये बेल क्या करेगा?" - मैने जिज्ञासावश पूछा

"दरअसल मैने कल्लन को कहा था उसे बेल दिलवा दूंगा। पर आप तो जानते हैं आम आदमी को बेल दिलवाना कितना दुरूह काम है। अब ये बेल उसके लिए ले जा रहा हूं...ताकि इसे भिजवा कर अपना वचन पूरा कर लूं।" जोखी गुरू ने एक सुर में सारी बात बताई, अपने सजीव बेल पर उभरे पसीने को अंगोछे से पोछा और निकल लिए। मैने देखा वो प्रेशर में थे, बेल के चक्कर में...इज्ज़त दांव पर थी भागना ज़रूरी था और हां कल्लन को बेल भी तो दिलवानी थी।