बहुत दिनों से खाली था
आसमान
ठहरती नहीं थीं निगाहें
आसमान में...
कसैली धूप लावा बन बरसती थी
लेकिन अब बारिश आई है
आखिर हर चीज़ की इंतहां होती है
यहां से वहां तक हर सू
बादलों का कब्ज़ा है...
दमकती बिजली है
मदमस्त मेघ गा रहे हैं...
बच्चे कागज की नाव बना, मचलते जा रहे हैं
मैं हाथ बढ़ा बारिश की नन्ही बूंदो को छूता हूं
ये मेरे हाथों से फिसल जाती हैं
जैसे रिश्ता ही नहीं था कभी, ऐसे निकल जाती हैं...
मैं हाथ बढ़ा बारिश की नन्ही बूंदो को छूता हूं
ReplyDeleteये मेरे हाथों से फिसल जाती हैं
जैसे रिश्ता ही नहीं था कभी, ऐसे निकल जाती हैं...
बेहतरीन....