Monday, July 5, 2010

मेरे हिस्से की बारिश

बहुत दिनों से खाली था
आसमान
ठहरती नहीं थीं निगाहें
आसमान में...
कसैली धूप लावा बन बरसती थी
लेकिन अब बारिश आई है
आखिर हर चीज़ की इंतहां होती है
यहां से वहां तक हर सू
बादलों का कब्ज़ा है...
दमकती बिजली है
मदमस्त मेघ गा रहे हैं...
बच्चे कागज की नाव बना, मचलते जा रहे हैं
मैं हाथ बढ़ा बारिश की नन्ही बूंदो को छूता हूं
ये मेरे हाथों से फिसल जाती हैं
जैसे रिश्ता ही नहीं था कभी, ऐसे निकल जाती हैं...
 

1 comment:

  1. मैं हाथ बढ़ा बारिश की नन्ही बूंदो को छूता हूं
    ये मेरे हाथों से फिसल जाती हैं
    जैसे रिश्ता ही नहीं था कभी, ऐसे निकल जाती हैं...

    बेहतरीन....

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