Thursday, November 18, 2010

रोटी...
जुगाड़ बन गई है
रोटी खिलवाड़ बन गई है
हड्डी के ढांचों पर राजनीति
अक्सर रोटी सेकती है...
तमाम दधिचियों की आहूति से...
हर रोज़ राजनीति चमकती है...
हर रोज़ किसी न्यूज़ चैनल पर...
इनकी खबरें वेश्या सी मचलती हैं...
सुनो अगर हो सके तो कान मत दो
मुल्ला, मस्जिदों में अज़ान मत दो
मंदिरों की घंटियों उतार फेंकों...
क्योंकि हर तरफ अस्थि पंजर फैले है...
शुभता का कहीं भी संकेत नहीं...
राजनीति में हर चेहरे
मनहूसियत की हद तक मैले हैं...

2 comments:

  1. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.

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  2. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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