Tuesday, February 9, 2010

राहुल कथायाम् प्रथमोध्याय:

राहुल गांधी…कौन राहुल गांधी? अरे इस देश में एक ही तो राहुल गांधी है। युवा राहुल गांधी। कांग्रेस का राहुल गांधी। सोनिया का लाल राहुल गांधी। चचा नेहरू का नाती राहुल गांधी। इंदिरा गांधी का पोता राहुल गांधी। राजीव गांधी का बेटा राहुल गांधी। और भी कुछ बताना पड़ेगा क्या। राहुल गांधी अब ‘बबुआ’ नहीं रहा बड़ा हो गया है समझदार हो गया है। राजनीति समझने लगा है। अब वो प्रेस को देखकर भकुआता नहीं है। बल्कि गुर्राता है भकाभक अपनी बात कहता है। ये अलग बात है कि उसकी बात भले ऐसी लगे कि किसी बच्चे को “लघुसिद्धांत कौमुदी” के कठिन सूत्र रटा दिए गए हों। कांग्रेस के नेता अभिभूतो हो रहे हैं। गदगद हो रहे हैं उनकी डूबती नइया को पार लगाने के लिए फिर से गांधी परिवार का एक युवा धरती पर आ चुका है। दुकानदारी बंद नहीं होगी।
सभी नेता घर के इस बबुआ की बालक्रीड़ा को देखकर छहा रहे हैं। आ हा हा...बबुआ कितना समझदार हो गया है...देखो तो...अले ले ले...वाह वा वा....

बबुआ भारत के चक्कर लगा रहा है। वोटबैंक साध रहा है। दलित बस्ती में जाकर रात गुज़ार रहा है हमें इत्मीनान से सोने दे रहा है। लोगों को बता रहा है भारत एक है। कितना समझदार है। अभी तक किसी ने कही थी ये बात वाह वा...वाह वा...

अरे बबुआ तो हीरो भी है चॉकलेटी फेस देखकर लड़कियां फिसल रही हैं। हां भई कितना खूबसूरत चेहरा है बाबा का। राहुल बाबा....प्यारे राहुल बाबा....सभी अभिभूत हैं। देखो तो कितना गज़ब का भाषण देता है। अरे थोड़े ही देता है ये तो अलग ही शैली है वो ज्ञान देने में .यकीन थोड़े ही करता है वो तो ‘इंटरएक्ट’ करता है। लोगों से सवाल पूछता है जवाब मांगता है। अले ले ले कितना प्यारा लगता है। जब बांह चढ़ाकर बड़ों जैसे बातें करता है। कहता है कि अब युवाओं को राजनीति में आना चाहिए। कहता है कि परिवारवाद नहीं चलेगा। कहता है बस बहुत हुआ। वाह वा...वाह वा...वाह वा।

दिग्विजय सिंह अभिभूत हैं...महासचिव अभिभूत हैं...रीता बहुगुणा तो ऐसा लगता है बालक्रीड़ा को देखकर सम्मोहित होती जाती हैं। राहुल बाबा ने हैलकॉप्टर उतारा...ज़ीरो विज़िविलिटी थी। पर अपने लोगों से मिलने के लिए जान की परवाह नहीं की। पायलट ने मना किया नहीं माने बोले उतारुंगा...न न न मैं तो यहीं उतारूंगा। और उतार दिया हेलीकॉप्टर ज़ीरो विज़िबिलटी में। अद्भुत...चमत्कार हो गया...प्रभू ये सक्षात आप हैं....भगवन ‘कलकी’ अवतार तो नहीं हो गया...वाह वा वाह वाह वा।


मनमोहन का तो मन मोह लिया है राहुल बाबा ने मनमोहन ने तो सोच भी लिया है कि उनका वारिस बस और बस राहुल बाबा ही होंगे। देखो तो कितनी समझ है राजनीति की सब जल रहे हैं हमारे हीरे को देखकर सच में लड़का हीरा है...हीरा....वाह वा...वाह वा....वाह वा।

सभी बालक्रीड़ा देखकर अघा रहे हैं। जैसे नंद के बेटे ‘लल्ला’ ‘कान्हा’ की बालक्रीड़ा देखकर अघा रहे थे। अरे देखो तो लल्ला को। अरे वाह कितना सुंदर है...कितना समझदार है...लल्ला भाग रहा है यहां से वहां लोग चिल्ला रहे हैं कान्हा कान्हा कान्हा।

पर मुझे एक बात नहीं समझ आ रही। कांग्रेसी गोपी बने सो ठीक। कान्हा प्रेम में अधर में अटके सो ठीक लेकिन मीडिया को क्या हो गया है। कभी-कभी लगता है कि ये कलयुग में कृष्णवतार कैसे हो गया। क्या कांग्रेसी देश की आगे की राजनीति कृष्ण की राजनीति से साधने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी तो राम का नाम लेकर राजनीतिक ज़मीन साधती रही अब क्या परोक्ष रूप से कृष्ण लीला की बारी है। बीजेपी ने रामरथ को चलाया कन्याकुमारी से अयोध्या तक। बहुत कुछ हासिल हुआ, ये अलग बात है कि पार्टी एक भी राम को पैदा नहीं कर सकी, हां पार्टी को डुबोने वाले रावण कई पैदा हो गए। आज पार्टी किनारे लग चुकी है। तो क्या कांग्रेसी राहुल बाबा को कृष्ण की छवि पढ़ाकर मैदान में उन्हे उतार चुके हैं। आखिर ये फील गुड क्यों कराया जा रहा है। मीडिया एकदम से राग राहुल क्यो गाने में जुट गया है।

कहीं ये एक भारी सेटिंग तो नहीं है। ये अचानक क्या हो गया है। कोई आलोचना नहीं कोई क्रॉस इक्ज़ामिनेशन नहीं ‘न खाता न बही, राहुल कहें सो सही’ मीडिया क्या अपने मकसद से भटक गया है या भटकना चाहता है जानबूझकर। और भटका रहा है हमें भी।
राहुल गांधी बिहार जाते हैं कहते हैं कि मुंबई सबकी है। एनएसए के कमांडो जो 26/11 में आतंकियों से लड़े वो बिहारी थे...उत्तर प्रदेश के थे। क्यों कहने की ज़रूरत है ये बिहार में खड़े हो कर इस वक्त? तो ज़रूरत है क्योंकि बेवकूफ बनाना है वोट साधना है चुनाव में डूबती लुटिया बचानी है। ये वही राहुल गांधी है जो उस वक्त मुंबई में अपने किसी दोस्त की पार्टी में शिरकत कर रहे थे जिसवक्त मनसे के कार्यकर्ता मुंबई पहुंचे उत्तर भारतीय छात्रों पर हमले कर रहे थे। उस वक्त क्यों राहुल बाबा को इस पूरी घटना पर टिप्पणी करने की ज़रूरत नज़र नहीं आई। अभी हाल की बात लीजिए महाराष्ट्र सरकार ने टैक्सी ड्राइवरों के मसले पर एक कानून बनाया कि पंद्रह साल का ‘डोमेसाइल’ टैक्सी ड्राइवरों के पास होने पर ही उन्हे परमिट दिया जाएगा। तब क्यों नहीं कुछ बोला गया। कहा गया आलोचना की गई। राहुल बाबा तब क्यों शांत रहे।

आज़मगढ़ के संजरपुर में जाकर दिग्विजय सिंह (जिन्होंने मध्यप्रदेश में सत्ता से बुरी तरह से बेदखल होने के बाद बड़े रौबीले अंदाज़ में ये शपथ ली थी कि वो दस साल तक मध्यप्रदेश की राजनीति का रूख नहीं करेंगे और कांग्रेस के आम कार्यकर्ता के रूप में काम करेंगे) ने जो बटला हाउस इनकाउंटर पर बकबक की क्यों उसपर हमारे-आपके राहुल बाबा का कोई बयान नहीं आया। दिग्विजय तो बकबकाने के बाद होश में आ गए। दरअसल वोट साधे जा रहे हैं। हर दिशा में हर दिशा से। वोट साधने में कार्य मायने नहीं रखता कांग्रेसी समझ चुके हैं। अगर काम मायने रखता तो मंहगाई से त्राहि-त्राहि कर रही जनता दोबारा कांग्रेस को सत्ता तक नहीं पहुंचाती। मुंबई की लोकल में बैठकर राहुल बाबा बिहार के और यूपी के वोट एक साथ साध रहे हैं। राहुल को ये बात समझ में आ रही है या समझाई जा रही है कि यूपी-बिहार में वोट मुंबई से सधेंगे।

राहुल बाबा ने नाग-नथैया कर दी है। यमुना रूपी मुंबई में निवास करने वाले विषधर के सिर पर चढ़कर उसके जबड़ों को सिलकर ये जतला दिया है कि उनकी निगाह दरअसल कहीं और हैं। महाराष्ट्र तो पहले ही सधा हुआ है। लेकिन राहुल की नज़र हैं कहां इसका इंटरप्रटेशन कहीं नहीं है। किसी मीडिया में नहीं न प्रिंट में न ही दुकानदारी चला रहे न्यूज़ चैनलों पर। मुनाफा शायद यहां ज्यादा नज़र आ रहा है। मीडिया आंखे फाड़े मुंह फाड़े चिल्लाता रहा वाह वा वाह वा...वाह वा क्या बात है मुंबई की लोकल में सफर...राहुल का जवाब....अचानक चले गए लोकल में....लेकिन दूसरे दिन सब साफ हो गया मुंबई पुलिस के ही सबसे बड़े अधिकारी ने कहा सब प्लान हमें मालूम था हमने पूरी तैयारी कर रखी थी। मीडिया चिल्ला रहा था एसपीजी को भी खबर नहीं थी....वाह वा वाह वा...वाह वा।

‘सो मुंदौ आंख कतो कछु नाहीं’ की राह पर सब चल रहे हैं।

मीडिया तो ‘चारण’ की भूमिका में आ गया है। युवराज की जय हो....जय हो प्रभू की आवाज़ें आ रहीं हैं। नेशनल चैनल गदगद हैं युवराज की हर बात पर वाह वा...वाह वा..वाह वा...करते हुए। पर ये वाह वही अगर वास्तव में देश के लिए कोई मुक्कमल रोशन भविष्य देता हो तो मैं भी कहूं वाह वा। लेकिन भईया ऐसा कहीं होने नहीं जा रहा। लोग अगर राहुल बाबा की साफगोई पर मरे मिटे जा रहे हैं तो ज़रा इस सम्मोहन से जागिए। ये समय सोने का नहीं जागने का है। निश्चय करने का है कि हमें आखिर क्या चुनना है खूबसूरत फोटोजेनिक फेस....या फिर सधे रास्ते पर निखरता और निखरता भविष्य। पर क्या करें विकल्प भी तो नहीं हैं हमारे पास।

राहुल ने आजकल एक राग छेड़ा है वहीं राग ‘नब्ज़’ है। राग युवा। युवाओं को उठना होगा। पर राहुल की सरपरस्ती में नहीं खुद की टीम खड़ी करनी होगी। राहुल गांधी अपनी टीम खड़ी कर रहे हैं युवाओं की टीम....पर युवा नेता नहीं होंगे कार्यकर्ता होंगे। नेता वहीं होंगे। जतिन प्रसाद, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सरीखे युवा.....जिनकी जीन में राजनीति है।


इस जीन की बुरी बात ये है कि किसी को भी बर्दाश्त नहीं करती। कांग्रेस की राजनीति में एक म्यूचुअल अंडरस्टैडिंग है। गांधी परिवार प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री जैसी ताकत और रुतबा और बाकि मंत्री पुत्र उसके नीचे। बस। इसके आगे खड़ी पाई है यानि पूर्ण विराम। खैर....ये बात मीडिया न समझे ऐसा नहीं है....पर क्या करे सेटिंग से परेशान है। खबरों की सारी सेटिंग ही राहुल पर है। सभी चैनल चिल्ला रहे हैं...बड़े ब्रांड्स को वशीभूत कर लिया गया है लगता है। अब बस इंतज़ार उस दिन का है जब ये ब्रांडेड चैनल चलाएंगे राहुल की खबर पर एक स्टिंग.....

‘यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजांम्यहम्’

No comments:

Post a Comment