Sunday, December 5, 2010

घुन लगे चेहरे...

मेरे आसपास
जमात है घुन लगे चेहरों की
जिनके दिलों में दीमक की बांदियां भी मिल जाएंगी
उन घुन लगे चेहरों के
भीतर अक्सर पकता रहता है कुछ
हर रोज़ वो सांप और सीढ़ी का खेल खेलते हैं
हर रोज़...
वो अपने बदसूरत चेहरे को
ढंकते हैं शालीनता के नकाब से
वो रेप्टाइल हैं...
जिनकी रीढ़ नहीं
बेहद लिज़लिज़े और रेंगकर चलते लोग
जिनकी आंखों में खटक सकते हैं
आपके घरों में जलते चूल्हे
अगर आपने उन्हे, उनसे बिना पूछे जलाया है
ये छोटे पर बड़े लोग हैं...
बिना रीढ़ के
जो सतर्क हैं हर पल
जिनको मालूम है
उनकी गंदगी से कब तक सड़ांध नहीं आ सकती
और जब ऐसा हो जाता है
वो बदल देते हैं अपना ठीहा...
पर दिल नहीं बदलता
घुन लगे चेहरे बहुत हैं
एक बार देखिए तो अपने आसपास...

5 comments:

  1. क्या खूब लिखा राकेश जी..
    ऐसे कई चेहरे हैं आसपास...जिनकी आंखों में शर्म नही है..जो होती शर्म तो रोज सुबह आईना नही देखते..
    पूजा मिश्रा

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  2. वाह ....बहूत खूब ....अद्भुत राकेश जी...क्या बात कही है आपने.
    बधाई....पंकज झा.

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  3. बहुत ख़ूब... लिखते रहिए...

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  4. एसे चेहरों से डर लगता है सर...

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