Wednesday, December 15, 2010

आईने...

1.
तुम आइने से साफ दिखते हो                  
सच कहो कितना हिसाब रखते हो
यहां हर मोड़ पर उलझते हैं रिश्ते
तुम कैसे सब साफ पाक रखते हो

2.
हर तरफ आइने रहने दो
हर तरफ इक सी शक्ल उतेरगी
न तोड़ पाएगा एक भी संग इसे
हर कहानी अपनी ही नज़र आएगी

3.
आइने से तस्वीरें ले लेकर
चस्पा हर गली मुहल्ले में हुई
ये आदमी गुम गया है कहीं
मिले तो मेरे घर का पता देना

4.
लम्स तुम्हारा मिला मुझे
अपनी तस्वीर को छूकर
चेहरे की लकीर ने मुस्काराकर
गुज़रे लम्हों की हरारत दे दी

5.
चौंक गया वो आइने में तस्वीर देखकर
घर से निकला था तब, चेहरा ऐसा तो नहीं था
या कि वो घर पर ही छूट गया
घर में लगे आइने को पता होगा

4 comments:

  1. धूसर होती दुनिया की उजास में बदरंग दिखाई देती शक्लों के बीच आइने की गवाही मौजूं है... बहुत बढ़िया...

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  2. चौंक गया वो आइने में तस्वीर देखकर
    घर से निकला था तब, चेहरा ऐसा तो नहीं था
    या कि वो घर पर ही छूट गया
    घर में लगे आइने को पता होगा

    राकेश जी यूँ तो सारे ही मुक्तक बेहतरीन हैं पर ये वाला कुछ ज्यादा करीब लगा .....

    लाजवाब प्रस्तुती .......!!

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  3. बहुत बढ़िया ....शानदार राकेश जी...मुझे उम्मीद है जब भी आप आइना देखते होंगे तो केम्पस की तरह ही वहाँ अपनी पवित्र मुस्कुराहटों का प्रतिविम्ब ही झलकता होगा...आप बनाए रखेंगे ऐसा...मुझे भरोसा है...अच्छी रचना.
    पंकज झा.

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  4. चेहरों की बदलती दुनिया में,
    आइने की शक्ल बदरंग हो गई,
    अब आइना तलाशता है खुद को
    बदल चुके चेहरों की हरारत में..

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