इस मोड़ पर...
Monday, August 2, 2010
यूं ही कुछ...
मुझे तरक़ीब लगाने दो कुछ
अब जाकर ठहरा हूं मैं किनारे पर
तुम्हें डूबने न दूंगा दरिया में इस तरह
लहरें जम जाएंगी मेरे इक इशारे पर
कहता है तूफान उठाएगा वो जहां के लिए
मुझे तरस आने लगी है उस दीवाने पर
वो इक भूखे आदमी की लाश थी
हुक्मरानों की कतार थी उसके दरवाज़े पर
'राकेश'
3 comments:
अनामिका की सदायें ......
August 2, 2010 at 11:44 PM
उम्दा गज़ल.
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Unknown
August 3, 2010 at 2:25 PM
जी शुक्रिया...
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अमृत उपाध्याय
August 3, 2010 at 10:04 PM
वो इक भूखे आदमी की लाश थी
हुक्मरानों की कतार थी उसके दरवाज़े पर
बेहतरीन..
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उम्दा गज़ल.
ReplyDeleteजी शुक्रिया...
ReplyDeleteवो इक भूखे आदमी की लाश थी
ReplyDeleteहुक्मरानों की कतार थी उसके दरवाज़े पर
बेहतरीन..