Monday, August 2, 2010

यूं ही कुछ...

मुझे तरक़ीब लगाने दो कुछ                            
अब जाकर ठहरा हूं मैं किनारे पर

तुम्हें डूबने न दूंगा दरिया में इस तरह
लहरें जम जाएंगी मेरे इक इशारे पर

कहता है तूफान उठाएगा वो जहां के लिए
मुझे तरस आने लगी है उस दीवाने पर

वो इक भूखे आदमी की लाश थी
हुक्मरानों की कतार थी उसके दरवाज़े पर

'राकेश'






3 comments:

  1. जी शुक्रिया...

    ReplyDelete
  2. वो इक भूखे आदमी की लाश थी
    हुक्मरानों की कतार थी उसके दरवाज़े पर

    बेहतरीन..

    ReplyDelete