Friday, December 12, 2014

कैलाश ज्ञान

मैं अभिभूत हूं। चाल चरित्र चिंतन और प्रखर राष्ट्रवाद की एक ब्रैंड पार्टी मुझे अभिभूत करती है। मैं उनके ऱाष्ट्रवादी चिंतन का हमेशा से कायल रहा हूं। मैं गंभीर तौर पर मानता हूं कि राष्ट्र की गरिमा, सभ्यता और संस्कृति कब की खत्म हो गई होती अगर ये भगवा महापुरुष हमारे इर्द-गिर्द न होते। मैं इनकी वीरता का कायल हूं। और यकीनन उसके सामने नतमस्तक होता हूं जब दुर्गापूजा के नाम पर दर्जनों लठैत, ललाट से लेकर लार तक को लाल रंग में रंगे भभकाते मुंह के साथ चंदा मांगते हैं।

कल एक वाकया सामने आया। कैलाश सत्यार्थी को नोबेल का शांति पुरस्कार मिला (वाकया ये नहीं है...भाई)। मध्यप्रदेश की विधानसभा में पत्रकारों ने कई विधायकों से इसपर प्रतिक्रिया ली। जो मिला वो आपसे बांट रहा हूं। पूछा गया- "क्या कहेंगे कैलाश सत्यार्थी को नोबेल का शांति पुरस्कार मिलने पर?" राष्ट्रवादी पार्टी के तमाम विधायकों ने सरकार के एक मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को नोबेल का शांति पुरस्कार मिलने पर बधाई दे दी।

"वो तो हैं ही ऐसे....उनका काम कमाल है।"
"उनको तो मिलना ही था केलाश भइया शांति के मसीहा हैं"
"हां तो भइया ने काम ही ऐसा किया है, विकास ही विकास कर दिया चारों तरफ...."
कानून मंत्री बहुत गंभीर हुईं। उन्होने लंबी बात कही। "कैलाश आज से नहीं बहुत पहिले से शांति के लिए काम करते रहे हैं। कई बार उन्होने अशांति फैलाने वाले को लट्ठा मारकर भगाया है।" 

राष्ट्र अपने गौरव के क्षणों में विधायकों की इस तस्वीर पर माथा पीट ले। राष्ट्रवादी होने पर शर्म आ जाए। अब ज़रा विपक्ष यानि कांग्रेसियों को सुनिए-
एक ने कहा- अरे भइया जब राज्य में इनकी सरकार केंद्र में इनकी सरकार तो नोबल सेट कर लिया होगा....
एक ने बमकते हुए- विधानसभा में सवाल उठाते गड़बड़झाले का आरोप लगा दिया।
एक कांग्रेसी विधायक तो कपड़ा फाड़ लोट गए बोले- व्यापम क्या कम था, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतना बड़ा घोटाला कर दिया। इस्तीफा दो, इस्तीफा दो।

इस सबके बीच मैने राष्ट्रवाद और संवेदहीनता की दुहाई देते पार्टी के मीडिया प्रभारी से पूछा- कुछ तो करिए, आपके विधायक सब लीपपोत चौका कर रहे हैं। उनका जवाब था- होश में रहिए, वो जो कर रहे हैं करने दीजिए, राष्ट्रवादी जो कहता है वही ध्रुव है। हमने सरकारी विभागों का ठेका लेने से मना किया है कुछ ठेके अभी भी हमारे पास हैं औऱ वो रहेंगे, खबरदार।

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