Tuesday, December 23, 2014

जनता परिवार का काक स्नान

बिछिला के गिरना एक कला है। मुझे याद आता है गंगा जी के दशाश्मेध घाट पर जो लोग मां गंगा का जल अपने सिर पर फेंकने आते थे उन्हे मां गंगे हर-हर कराने में देर नहीं करती थीं। लपक के तमाम ऐसे लोग सट्ट से पानी में गोत जाते थे ऑटोमैटिक व्यवस्था थी। घाट के किनारे की सीढ़ियों पर लगी काई इसमें विलक्षण भूमिका निभाती थी। और शायद तमाम नहान शहीदों पर बाद में खिखियाती भी होगी। ठेठ भाषा में इसे बिछलाना कहते हैं।
आज बिछलाना याद आया न जाने कहां से, जब दिल्ली में जनता परिवार का दमघोंटू जमावड़ा देख रहा था टीवी पर। कौन समाजवादी ये वाहियात जमात? कौन नेता लालू, मुलायम और नीतीश-शरद??? कौन सा समाजवाद बिहार वाला या मौजूदा यूपी वाला? लोहिया को ज़मीन में गाड़ कर पाट देनेवाले ये समाजवादी कौन सी जनता की बात कर रहे हैं? गुंडई के दौर की...जहालत के दौर की जिसने बिहार-यूपी की कई पीढ़ियों को बर्बाद करके रख दिया। या फिर उन हफ्ताखोरों की जो देश की राजनीति में छा जाने को बेताब हैं?
वामपंथ से लेकर मौजूदा समाजवाद सिर्फ और सिर्फ गंगा (जनता के मुद्दों को) को सिर पर छिड़ककर पवित्र होने पर आमादा है। इन गुंडों की फौज की न तो कोई हैसियत है न बिसात। मैने देखा है कैसे यूपी समाजवादियों के आने पर बदलती है। कैसे गिरहकटों की जमात अचानक कार्यकर्ताओं में तब्दील हो जाती है। उजड्ड, फूहड़ और बेअक्ल लोगों की जमात। इन्हे बिछला के गिरना होगा...नहीं गिरे तो अड़ंगी लगा के गिराया जाए...पर गिरना ज़रूरी है। कोई सत्ता में आए या जाए...बिहार और यूपी को बर्बाद करने वाले इन लुहेड़ों और लंपटों से तो देश बचना ही चाहिए। और नीतीश को क्या कहें...बेग़ैरत इंसान की महत्वाकांक्षा जब आसमान पर चढ़कर नीचे गिरती है तो किरच-किरच कर टूटती है, तब इंसान, इंसान नहीं रह जाता रेप्टाइल हो जाता है। बिना रीढ़ वाला। घिसट कर चलनेवाला और जीभ लपलपाने वाला। जिसकी आंखों में लाल रेशे हैं और वो एक जमात में शामिल होकर भी चोर नज़र के साथ बैठा है।

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