Wednesday, December 10, 2014

पुरातन पद्धति पर चर्चा


कल एक खबर आई। एक साहब को किसी ने धमकी भरा खत लिखा। ये खत उनकी कार में छोड़ा गया था। पत्र के साथ एक खाली कारतूस भी रखी गई थी। पत्र में लिखा था "कायदे से रहो वर्ना तुम्हारे होश को ठिकाने लगा देंगे।" लंबे समय बाद इमेल-व्हाट्स एप के दौर में खालिस पत्र परंपरा को ज़िंदा रखने की कवायद करनेवाले इस धमकीबाज़ के प्रति दिल श्रद्धा से भर गया। और दूसरी वो व्यक्तिसेवा भी दीगर थी जिसमें धमकीबाज़ ने साहब के होश ठिकाने लगा देने की बात कही थी।
होश बहुत लंबे समय से ठिकाने लगाने की परंपरा भी अब करीब-करीब विलुप्तप्राय है। अब तो बहुधा व्यक्ति को ठिकाने लगा देने का प्रयोग सीधे कर लिया जाता है। मैं तो इस बात का पक्का हिमायती हूं कि बहुत सारे लोगों के होश अगर ठिकाने लगा दिए जाएं तो समाज को भला हो जाए। पर यहां एक सवाल पैदा होता है कि ये होश ठिकाने लगता कैसे है। धमकीबाज़ जब अपने होश ठिकाने लगाने की विशेषज्ञता का चि्टठी में ज़िक्र कर हो तो उसके पहले उसे इस बात का खुलासा भी करना चाहिए कि अमुक-अमुक सूत्रों या लक्षणों के ज़रिए इस बात की पुष्ट होती है कि आपका होश अपने ठिकाने से निकलकर इधर-उधर चला गया है।
....और फिर एक और खबर इसी दिन सामने आई कि कुछ हिंदुवादियों ने आगरा में धर्म परिवर्तन (भ्रम में रखकर) कराने का एक अद्भुत विराट और विलक्षण कार्य किया। ये अचानक इन वीरों को हुआ क्या? मैं ये समझ न सका। कल तक तो माथा भर तिलक पोत कर बड़ी-बड़ी लाल आंखे लिए चंदा वसूली करते थे। इनका होश ठिकाने पर है या कि अब मूल ठिकाने से कहीं और निकल गया है। मानक विचलन निकालना ज़रूरी है। क्योंकि इसके बाद ही ये तय हो पाता है कि वापस होश को मूल स्थान पर लाने के लिए किस पद्दति की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पत्र व्यवहार से लेकर कानून व्यवहार और ठोंक बजावन व्यवहार तक की अचूक पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। होश ठिकाने पर लाने की पद्धति पुरानी है पर है कारगर...।

No comments:

Post a Comment