1.
चिंगारियां पानी से नहीं बुझतीं
न कभी थकती हैं...
चिंगारियां मन में दबी हों...
तो मन भी नहीं थकता
चिंगारियां गुंजाइश रखती हैं
हर दौर में खुद के आजमाइश की
चिंगारियां जंगल की आग बुझा सकती हैं...
और सांस ले लें तो पूरा शहर जला सकती हैं...
तो चिंगारी को सहेजेंगे क्या
खुद में चिंगारी बोएंगे क्या...
शर्त है ज़मीन उपजाऊ होनी चाहिए...
आग के भड़कने की भी गुंजाइश होनी चाहिए...
2.
अगर लगता है कि...
नई शुरूआत के लिए...
ज़रूरी है आग लगाना
तो जला दो न सब..
अगर लगता है कि
कि तंत्र खंडहर बन गया है...
तो, ढहा दो न सब...
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