वो सत्य की खोज से अभी लौटे हैं। करीब एक पखवाड़े बाद। उनके चेहरे पर सत्य का तेज है। जैसे अभी फेयर एंड लवली मल के आए हों। ग्लो परमानेंट है। सत्य परमानेंट होता है टेंपोरेरी नहीं। सत्य कई तरह के होते हैं। अर्ध सत्य, पूर्ण सत्य, पाव भर सत्य, छंटाक भर सत्य आदि इत्यादि। उन्होने बताया सत्य सापेक्ष है। जो हो रहा है वो 'परपेचुएल' है। मैं उनकी बात काट नहीं सकता क्योंकि सत्य की खोज करने वाले की बात काटी नहीं जाती। ये एक तरह का रिस्क भी होता है कभी-कभी बात काटने पर सत्य की खोज करनेवाला या उसके अनुयायी आपको काट लेते हैं।
पर मैं शिद्दत से मानता हूं कि उन्होने सत्य की खोज की होगी। उन्होने पप्पू की चाय दुकान पर अपने उधार खाते को आगे बढ़ाते कुल जमा एक चाय का ऑर्डर देते बताया कि आखिरकार सत्य मिल गया। मैने पूछा कहां, वो तुनककर बोले गोदौलिया से लक्सा जाते दीना चाट भंडार के सामने वाले मंढउल (मेनहोल या गटर) में। अरे बकलोल सत्य ऐसे थोड़े ही मिल जाता है। उसकी कोई नियत जगह थोड़े ही होती है। उसके लिए लगातार चलना पड़ता है, तपस्या करनी पड़ती है। हिमालय की कंदराओं में मिलने के दावे तो होते हैं पर एक्यूरेट कोई नहीं बता सकता किस कंदरा में है। हर कंदरा में जाकर आजमाना पड़ता है। यहां नहीं मिला तो दूसरी में जाओ। दूसरी में नहीं तो तीसरी में। ऐसे तप करना पड़ता है तब जाकर मिलता है।
मुझे खुद पर लज्जा आई। सही है सत्य इतना आसानी से मिलता तो लोग घर परिवार छोड़ कर सत्य की खोज में क्यों निकलते। नज़दीक ही कहीं गड्ढा खोद निकाल लेते। दरअसल सत्य हर किसी को नहीं मिल सकता। कुछ लोग कहते हैं भूख, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, बच्चों की मौत, बदहाल अस्पताल, सड़ा सिस्टम ये भी तो सत्य है। अब मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है। कितना छोटा सोचते हैं वे। वो कभी उनके जैसे सत्य खोजने वाले नहीं हो सकते।
तो आखिरकार वो सत्य खोज लाए। मैने पूछा गुरूदेव खोजा कैसे, कहां रखा है दिखाइए।
उन्होने ने गहरी सांस ली। उनके चेहरे पर असीम शांति उभरी। आंखे बंद कर उन्होने ध्यान किया। ध्यान आंखे बंद करके ही किया जाता है। आंखे खोलकर ध्यान करने से दूसरे ओछे सत्य टकराते हैं। छंटाक भर वाले। वो आंखे बंद कर कुछ देर बैठे रहे। इससे एक बात और पता चली कि सत्य कभी खुली आंखों से नहीं दिखता। उसके लिए आंख बंद करनी पड़ती है। करीब 5-7 मिनट के मौन के बाद उन्होने आंखे खोलीं। सत्य सतत है, सत्य शाश्वत है, सत्य सापेक्ष है, सत्य सरल है। मन फिर दुविधा में हुआ मैने पूछा गुरू क्या 'छेकानुप्रास' (जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है।) वो करीब-करीब गुर्राते हुए भकभकाए। सत्य जानो नहीं महसूस करो।
मैने पूछा- कैसे
वो बोले सत्य दरअसल वो नहीं जो दिखता है।
पर बच्चे की फीस जो जमा करनी है, नहीं तो नाम कट जाएगा, ये भी तो सत्य है- मैने अचकचाते पूछा
यही तो दिक्कत है, ये सत्य होकर भी सत्य नहीं ये पाव भर सत्य है- वो गंभीर होते उवाचे
मेरी आंखे चमकीं, मैने निवेदन किया अब आधा किलोइया और पूर्ण सत्य पर प्रकाश डालिए।
वो रहस्यमयी मुस्कान रखे बुदबुदाए- उंह जो सत्य जानने में ज्ञानियों को सदियां लग गईं वो सेकेंड में जानेगा
मैने न सुनने का अभिनय करते फिर सवाल दागा- प्रकाश डालिए गुरू
आधा सत्य ये है कि मैने पप्पू से एक चाय मंगाई है, पर उसका आधा सत्य ये है कि इस एक चाय में दो लोगों का हिस्सा लगेगा जो कि मेरे ज़ेहन में पहले से ही चल रहा है।
ओहो, मतलब एक सत्य वो जो दिखा और दूसरा आधा वो जो नहीं दिखा- मैने चमकते हुए कहा
बिल्कुल....
तो पूर्ण सत्य ?
पूर्ण सत्य ये कि ऐसा लगता है कि मैने चाय मंगाई तो पैसे मैं दूंगा, पर ऐसा नहीं है सत्य कुछ दूसरा है
क्या ?
ये बहुत बहुत गूढ़ है
वो तो है पर जानना चाहता हूं गुरुवर
तू नहीं समझ पाएगा, मृत्युलोक के प्राणी
आप समझाएंगे तो समझ जाउंगा प्रभू
तो सुन
सुनाइए...
सत्य संभाल पाएगा
आपके आशीर्वाद से..
कठिन है
होने दीजिए
देख डिगेगा तो नहीं
बिल्कुल नहीं
चूकेगा तो नहीं
सवाल नहीं..
तो सुन
सुनाइए
ये आधा किलोइया सत्य है कि एक चाय मैने मंगाई है, ये भी आधा ही सत्य है कि तुझे लगता है मैने मंगाई है तो मै ही पैसे चुकाउंगा।
तो पूर्ण सत्य क्या है प्रभु....
पूर्ण सत्य ये है कि पपुआ को मैने पहले ही कह रखा है कि जिस किसी के साथ बैठकर मैं चाय मंगाऊं चाय का पैसा उसके खाते में ही जोड़ा जाए। - ये कहते वो ठठा कर हंसे और हंसते गए। ये हंसी सत्य की थी। सत्य जीता था।
मैं निष्कर्ष पर पहुंचा, यकीनन सत्य को समझना कठिन है। जो दिखता है जो आप देख पाते हैं सत्य वो नहीं, जो नहीं दिख रहा सत्य शायद वो है।
पर मैं शिद्दत से मानता हूं कि उन्होने सत्य की खोज की होगी। उन्होने पप्पू की चाय दुकान पर अपने उधार खाते को आगे बढ़ाते कुल जमा एक चाय का ऑर्डर देते बताया कि आखिरकार सत्य मिल गया। मैने पूछा कहां, वो तुनककर बोले गोदौलिया से लक्सा जाते दीना चाट भंडार के सामने वाले मंढउल (मेनहोल या गटर) में। अरे बकलोल सत्य ऐसे थोड़े ही मिल जाता है। उसकी कोई नियत जगह थोड़े ही होती है। उसके लिए लगातार चलना पड़ता है, तपस्या करनी पड़ती है। हिमालय की कंदराओं में मिलने के दावे तो होते हैं पर एक्यूरेट कोई नहीं बता सकता किस कंदरा में है। हर कंदरा में जाकर आजमाना पड़ता है। यहां नहीं मिला तो दूसरी में जाओ। दूसरी में नहीं तो तीसरी में। ऐसे तप करना पड़ता है तब जाकर मिलता है।
मुझे खुद पर लज्जा आई। सही है सत्य इतना आसानी से मिलता तो लोग घर परिवार छोड़ कर सत्य की खोज में क्यों निकलते। नज़दीक ही कहीं गड्ढा खोद निकाल लेते। दरअसल सत्य हर किसी को नहीं मिल सकता। कुछ लोग कहते हैं भूख, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, बच्चों की मौत, बदहाल अस्पताल, सड़ा सिस्टम ये भी तो सत्य है। अब मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है। कितना छोटा सोचते हैं वे। वो कभी उनके जैसे सत्य खोजने वाले नहीं हो सकते।
तो आखिरकार वो सत्य खोज लाए। मैने पूछा गुरूदेव खोजा कैसे, कहां रखा है दिखाइए।
उन्होने ने गहरी सांस ली। उनके चेहरे पर असीम शांति उभरी। आंखे बंद कर उन्होने ध्यान किया। ध्यान आंखे बंद करके ही किया जाता है। आंखे खोलकर ध्यान करने से दूसरे ओछे सत्य टकराते हैं। छंटाक भर वाले। वो आंखे बंद कर कुछ देर बैठे रहे। इससे एक बात और पता चली कि सत्य कभी खुली आंखों से नहीं दिखता। उसके लिए आंख बंद करनी पड़ती है। करीब 5-7 मिनट के मौन के बाद उन्होने आंखे खोलीं। सत्य सतत है, सत्य शाश्वत है, सत्य सापेक्ष है, सत्य सरल है। मन फिर दुविधा में हुआ मैने पूछा गुरू क्या 'छेकानुप्रास' (जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है।) वो करीब-करीब गुर्राते हुए भकभकाए। सत्य जानो नहीं महसूस करो।
मैने पूछा- कैसे
वो बोले सत्य दरअसल वो नहीं जो दिखता है।
पर बच्चे की फीस जो जमा करनी है, नहीं तो नाम कट जाएगा, ये भी तो सत्य है- मैने अचकचाते पूछा
यही तो दिक्कत है, ये सत्य होकर भी सत्य नहीं ये पाव भर सत्य है- वो गंभीर होते उवाचे
मेरी आंखे चमकीं, मैने निवेदन किया अब आधा किलोइया और पूर्ण सत्य पर प्रकाश डालिए।
वो रहस्यमयी मुस्कान रखे बुदबुदाए- उंह जो सत्य जानने में ज्ञानियों को सदियां लग गईं वो सेकेंड में जानेगा
मैने न सुनने का अभिनय करते फिर सवाल दागा- प्रकाश डालिए गुरू
आधा सत्य ये है कि मैने पप्पू से एक चाय मंगाई है, पर उसका आधा सत्य ये है कि इस एक चाय में दो लोगों का हिस्सा लगेगा जो कि मेरे ज़ेहन में पहले से ही चल रहा है।
ओहो, मतलब एक सत्य वो जो दिखा और दूसरा आधा वो जो नहीं दिखा- मैने चमकते हुए कहा
बिल्कुल....
तो पूर्ण सत्य ?
पूर्ण सत्य ये कि ऐसा लगता है कि मैने चाय मंगाई तो पैसे मैं दूंगा, पर ऐसा नहीं है सत्य कुछ दूसरा है
क्या ?
ये बहुत बहुत गूढ़ है
वो तो है पर जानना चाहता हूं गुरुवर
तू नहीं समझ पाएगा, मृत्युलोक के प्राणी
आप समझाएंगे तो समझ जाउंगा प्रभू
तो सुन
सुनाइए...
सत्य संभाल पाएगा
आपके आशीर्वाद से..
कठिन है
होने दीजिए
देख डिगेगा तो नहीं
बिल्कुल नहीं
चूकेगा तो नहीं
सवाल नहीं..
तो सुन
सुनाइए
ये आधा किलोइया सत्य है कि एक चाय मैने मंगाई है, ये भी आधा ही सत्य है कि तुझे लगता है मैने मंगाई है तो मै ही पैसे चुकाउंगा।
तो पूर्ण सत्य क्या है प्रभु....
पूर्ण सत्य ये है कि पपुआ को मैने पहले ही कह रखा है कि जिस किसी के साथ बैठकर मैं चाय मंगाऊं चाय का पैसा उसके खाते में ही जोड़ा जाए। - ये कहते वो ठठा कर हंसे और हंसते गए। ये हंसी सत्य की थी। सत्य जीता था।
मैं निष्कर्ष पर पहुंचा, यकीनन सत्य को समझना कठिन है। जो दिखता है जो आप देख पाते हैं सत्य वो नहीं, जो नहीं दिख रहा सत्य शायद वो है।
No comments:
Post a Comment