Sunday, November 16, 2014

सफाई की 'अलख'


बलेसर सुरियाए चले आए हैं। सफाई अभियान की तैयारी है। त्रिभुवन बाबू झक्क सफेद कुर्ता अउर बंडी सिलवाए हैं। उनके नाती एकेश्वर एक सफेद टीशर्ट जिसपर "लेट्स डू इट" लिखा है पहिन के अंग्रेजी में दांत निपोर रहे हैं। बिंदेश्वरी पाणे थोड़ी देर से आए हैं। बाबू साहब ने पूछा - "का बिंदेश्वरी देर कइसे भई....?" अरे सुबह मैदान फिरने गया था तो लोटा उहैं छूट गया उसे ही खोजने में देरी हो गई।- बिंदेश्वरी पाणे ने जवाब दिया...।
कुल मिलाकर चहल पहल बढ़ गई है। सफाई का स्थान भी निश्चित कर लिया गया है। बरुना घाट की सफाई होगी। ल लोटा घाट कि काहें...गांव की क्यों नहीं?..."अरे नहीं गांव में सफाई शुरु की तो धूरै-धूर हो जाएगा। पक्का जमीन थोड़ै है।" - किसी ने जवाब दिया। - "संझा हो जाएगी पर गांव सफा नहीं होगा।"
अरे ए हो...अ मीडिया प्रेस-कैमरा उसको बोलाया कि नहीं। अरे हां एकी बोल दिए हैं भाई। एकी कौन? अरे बकलोल, एकेश्वर बंबई में जाकर एकी हो गए हैं। अचानक सनसनी फैलती है। बलेसर को त्रिभुवन बाबू ने बुलाया है। झाड़ू नहीं दिख रही। अरे झाड़ू कहां है बलेसर? बलेसर ने कहा गरीब गुप्ता को बोला है। गरीब गुप्ता की दुकान बंद है। ले लोटा...। हो गई गड़बड़। गरीब गुप्ता कल रात ही अपनी सुसराल साले की शादी में निकल लिए। अब झाड़ू के बिना राधा कइसे नाचेगी?
त्रिभुवन बाबू तांडव कर रहे हैं- " बलेसरा तुमसे कोई काम नहीं हो सकता।"
बलेसर सुन्न पड़ गए हैं...गांव में सन्नाटे सी फैलती सनसनी छा गई है। मीडिया अब कि तब पहुंचनेवाला है। सफाई होगी कैसे? झाड़ू संकट बड़ा है। किसी ने कहा घर की झाड़ू निकाल लो...। महिलाएं लामबंद हो गईं- "खबरदार! झाड़ू खराब हो जाएगी।"
बिंदेश्वरी पाणे ने संकटग्रस्त माहौल में आइडिया फेंका है- " बाबू साहब एक काहे न अलख भर जगा दी जाए?"
अलख भर माने?
माने ये कि सांकेतिक सफाई
ये क्या है भाई...?
अरे वो ये कि कुछ पत्ता-पत्ती घाट पर डाल दी जाए और फिर उसको हाथों से चुन-चुन के कचरा के डब्बा में फेंक दिया जाए...।
वो मारा! क्या आइडिया है।
पत्ता-पत्ती बटोरो रे एकेश्वरा...।
बाबू साहब के नाती एकेश्वर युवा ब्रिगेड के साथ पत्ता खोजने में लग चुके हैं।
चिंघाड़ के कहते हैं...." हे डूड लेट्स बटोरो पत्ता..." खलीहर युवाओं की टोली एकेश्वर के साथ हो लेती है।
सफाई अभियान की "अलख" जग गई है। दूर पगडंडी पर मीडिया की गाड़ियां धूल उड़ाते आगे बढ़ रही हैं। बाबू त्रिभुवन सिंह सदरी झाड़ रहे हैं, घर से शीशा मंगवाया है। पंडित जी मुंह में गुलाए पान की पीक ज़मीन पर फेंक, सुबह निवृत्त करवाने वाले लोटे से कुल्ला कर रहे हैं।

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